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बिहार में सियासी इफ्तार का दौर शुरू, बढ़ती नाराजगी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत

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गुरुग्राम डेस्क | बिहार में सियासी इफ्तार का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया है, और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सरकारी आवास में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि सियासी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें आम से लेकर खास तक सभी लोगों को आमंत्रित किया गया है। बिहार में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सरकारी निवास पर हर साल इफ्तार पार्टी का आयोजन करते हैं। हालांकि, इस बार इफ्तार पार्टी का आयोजन सियासी उठापटक के संकेत दे रहा है।

नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी: एक सियासी आयोजन

नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है, जहां हर साल विभिन्न राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासनिक अधिकारी एक साथ आते हैं। हालांकि, इस बार इस इफ्तार पार्टी को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। बिहार के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत-ए-इफ्तार का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। यह एक बड़ी राजनीतिक घटना है, जो बिहार में मुस्लिम समुदाय के असंतोष को दर्शाता है।

बहिष्कार: एक मजबूत सियासी संदेश

इमारत-ए-शरिया की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि बिहार के कई प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इन संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद, जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी जैसे संगठन शामिल हैं। इन संगठनों ने सिर्फ बहिष्कार का ऐलान नहीं किया, बल्कि मुख्यमंत्री को एक पत्र भी भेजा है, जिसमें उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराया है।

यह बहिष्कार बिहार में मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ते असंतोष का प्रतीक है। पिछले कुछ वर्षों में नीतीश कुमार के प्रति मुस्लिम वोटर्स में नाराजगी साफ तौर पर दिखाई दी है। 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने अपनी नाराजगी दिखाई है। अब आगामी विधानसभा चुनावों में यह असंतोष और भी गहरा हो सकता है, क्योंकि बिहार में कई सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

मुस्लिम वोटर्स की नाराजगी और बिहार की सियासत

मुस्लिम  वोटर्स की नाराजगी नीतीश कुमार के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। यदि मुस्लिम समुदाय में असंतोष बढ़ता रहा, तो इसका असर बिहार की सियासत पर पड़ सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो हमेशा से विभिन्न समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते आए हैं, अब इस तनावपूर्ण स्थिति को सुधारने के लिए जूझ रहे हैं।

विशेषकर बिहार के विधानसभा चुनाव 2025 को देखते हुए, मुस्लिम समुदाय का समर्थन नीतीश कुमार के लिए महत्वपूर्ण रहेगा। पिछले कुछ चुनावों में मुस्लिम वोटों की नाराजगी को लेकर जो संकेत मिले हैं, वह मुख्यमंत्री के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। यदि मुस्लिम वोटरों की नाराजगी जारी रहती है, तो इसका असर उनके राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ सकता है।

बिहार की सियासी तस्वीर 2025 चुनावों के पहले

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, और सियासी दांव-पेंच अब तेज़ हो चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) या जेडीयू, हमेशा से व्यापक वोटों के गठजोड़ पर निर्भर रही है, जिसमें मुस्लिम समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल है। लेकिन अब, जब मुस्लिम वोटरों के बीच असंतोष बढ़ रहा है, तो 2025 के चुनावों में जेडीयू के लिए स्थिति कठिन हो सकती है। नीतीश कुमार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे मुस्लिम समुदाय से अपनी दूरी को कम करें और फिर से उनका विश्वास जीतें।

इस साल की इफ्तार पार्टी और इसके बाद हुए विवाद ने यह साफ कर दिया है कि मुस्लिम समुदाय के साथ नीतीश कुमार के रिश्ते में खटास आई है। आगामी दिनों में मुख्यमंत्री के लिए यह चुनौती बनी रहेगी कि वे मुस्लिम वोटरों का समर्थन वापस जीतने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी महज एक धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह एक सियासी बयान था। मुस्लिम संगठनों का बहिष्कार यह दिखाता है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व के प्रति मुस्लिम समुदाय का विश्वास अब कमजोर हो चुका है। 2025 के चुनावों में इन घटनाओं का असर पड़ेगा, और नीतीश कुमार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे मुस्लिम समुदाय से अपने रिश्तों को सुधारने में सफल हों, ताकि उनकी पार्टी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सके।


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